नेताजी सुभाष चंद्र बोस - स्वतंत्रता का सपना
बापूजी ने Subhas Chandra Bose जी की ओर मुड़कर देखा और कहा - " Subhas जी! तुम्हारा आग्रह है कि जन आंदोलन छेड़ दिया जाए। तुम्हारा देश प्रेम और भारत को स्वतंत्र कराने का संकल्प अद्वितीय है। तुम्हारे साहस कि मैं मुक्त कंठ से प्रशंसा करता हूं। लेकिन मैं जानता हूं कि इतनी जल्दी क्या है ? धैर्य रखो सही समय आने दो।" बापू के मुंह से यह सुनकर Subhas Chandra Bose बोले - " बापू जी ! मैं पुनः इस बात को जोर देकर कहना चाहता हूं कि ; इस युद्ध में इंग्लैंड चाहे जीते या हारे, लेकिन इतना निश्चित है कि वह अवश्य कमजोर हो जाएगा। उसमें इतनी शक्ति नहीं रहेगी कि वह भारत के प्रशासन की जिम्मेदारी ढो सके। ऐसे में यदि हम प्रबल जन आंदोलन खड़ा कर देंगे तो, इंग्लैंड का प्रशासन उसे रोक नहीं पाएगा और घबरा जाएगा। क्योंकि इस समय उसका सारा ध्यान और शक्ति युद्ध में लगी हुई है। यदि वह जीत भी गया तो थका मांदा इंग्लैंड भारत के जनाक्रोश से घबरा जाएगा और हमारे थोड़े से प्रयास से वह भारत को स्वतंत्र कर देगा। "बापू ! अगर आप ऐसा करने को तैयार होते हैं" तो सारा राष्ट्र आपके पीछे खड़ा हो जाएगा।" बापू जी Subhas Chandra Bose जी की बातों को ध्यान से सुनते रहे। फिर एकदम बोल उठे कि, " भले ही समूचा राष्ट्र तैयार हो, फिर भी मैं वह काम नहीं करूंगा, जिसके लिए यह घड़ी उपयुक्त नहीं है।" सुभाष बोले - तो फिर मुझे आजादी का आंदोलन छेड़ने के लिए अपना आशीर्वाद दीजिए।" गांधीजी मुस्कुराए और बोले - " सुभाष तुम्हें मेरे आशीर्वाद की आवश्यकता नहीं है। यदि तुम्हारा अंतःकरण यह कहता है कि, शत्रु पर आक्रमण के लिए यही समय उपयुक्त है, तो आगे बढ़ो और भरपूर चेष्टा करो। तुम सफल रहे, तो मैं तुम्हारा अभिनंदन सबसे पहले करूंगा। " बापू की इन बातों को सुनकर दृढ़ निश्चय सुभाष चंद्र बोस 16 जनवरी 1941 की रात्रि में भारत की स्वतंत्रता का स्वप्न अपनी आंखों में लेकर विदेश के लिए निकल पड़े।