गांधी जी के प्रेरक प्रसंग
नकल
एक बार Mahatma Gandhiji के विद्यालय में निरीक्षण के लिए विद्यालय निरीक्षक आए थे। निरीक्षक ने छात्रों को पांच शब्द बताकर उनकी हिज्जे या वर्तनी लिखने को कहा। बच्चे वर्तनी लिख ही रहे थे कि, उनके शिक्षक ने देखा, Gandhiji ने एक शब्द के हिज्जे गलत लिखे हैं। उन्होंने Gandhiji को संकेत कर बगल के छात्र से निकल कर हिज्जे ठीक कर लिखने के लिए कहा। Gandhiji जी ने ऐसा नहीं किया। उन्हें नकल करना अपराध लगा। बाद में इसके लिए शिक्षक की डांट खानी पड़ी परंतु उन्होंने ठान लिया कि नकल नहीं करूंगा।
बात उन दिनों की है जब सेवाग्राम आश्रम बन रहा था। Gandhiji वहां अकेले झोपड़ी डाल कर रहते थे। बाकी लोग रोजाना वर्धा से पाँच मील पैदल चलकर आते थे। वहां जाने का रास्ता बहुत खराब था- उबड़ खाबड़ और ऊंचा नीचा। एक दिन कुछ लोग Gandhiji से बोले-" बापू, यदि आप एक चिट्ठी प्रशासन को लिख दें तो यहां का रास्ता ठीक हो जाएगा।"
Gandhi Ji ने कहा- " यह काम मैं नहीं करूंगा। यहां का रास्ता बगैर प्रशासन की मदद की भी ठीक हो सकता है।" एक ने पूछा-" कैसे ? " Gandhiji ने उत्तर दिया- " श्रमदान करने से। कल से सभी लोग वर्धा से आते समय इधर-उधर बिखरे पड़े दो-दो पत्थर उठा कर लेते आएँ और रास्ते में बिछाते जाएँ।" अगले दिन से यह काम शुरू हो गया। लोग पत्थरों को बिछाते और Gandhiji उसे समतल कर देते।
Gandhiji के प्रशंसकों में बृजकृष्ण चांदीवाल भी थे। उनका शरीर भारी भरकम था। एक दिन वे भी आश्रम देखने वर्धा पहुंच गए । उन्हें मालूम हुआ कि सेवाग्राम तक पाँच मील का सफर उबर खाबड़ रास्ते से पैदल ही तय करना होगा तो उनको पसीना आ गया। किसी तरह वे आश्रम तक पहुँचे। Gandhiji ने उन्हें आदरपूर्वक बिठाया। चांदीवाल जी झुंझलाकर बोले-" मेरा स्वागत करना छोड़िए और यह बताइए कि क्या दो-दो पत्थरों से रास्ता बन जाएगा। यदि आप प्रशासन से काम नहीं करवा सकते तो बताइए इस काम के लिए आपको कितना धन चाहिए? मैं दूंगा।"
Gandhiji मुस्कुरा कर बोले-" हरे भाई! आप गुस्सा क्यों करते हैं? मुझे आपके दान की जरूरत तो है, लेकिन धनदान की नहीं बल्कि श्रमदान की। आप तो जानते ही हैं कि बूँद-बूँद से समुद्र भर जाता है। आइए, आप भी इस काम में हमारे साथ लग जाइए।
इसके तीन फायदे होंगे- आश्रम ठीक होगा, आपका धन बचेगा और आपकी तोंद पिचक कर अंदर चली जाएगी, जिससे आप हमेशा के लिए निरोग हो जाएंगे।"
गांधी जी का इतना कहना था कि चांदीवाल जी का गुस्सा शांत हो गया और वे ठहाका मारकर हंस पड़े।
"रस्सी कूद"
Mahatma Gandhi moral story in hindi
Gandhiji का जीवन अत्यंत सादा था। वह अपने सभी काम भरसक अपने ही हाथों करते थे। सबेरे गेहूं स्वयं पीसते थे। चक्की चलाते समय मनोरंजन भी होता था। इसी तरह पानी भरना, कचरा फेंकना कमा टट्टी साफ करना, बर्तन मांजना तथा घर के अन्य सभी काम में उत्साह पूर्वक करते थे। Gandhiji का सवेरे टहलने का व्यायाम बिना किसी रूकावट के बराबर जीवन भर चला। लेकिन यह बात कम लोग जानते हैं कि Gandhiji दक्षिण अफ्रीका में समय-समय पर एक और तरह का व्यायाम भी करते थे।
उनका यह व्यायाम बड़ा मजेदार होता था। वह व्यायाम था रस्सी कूद। रोज सवेरे Gandhiji यह व्यायाम करते थे। जब Gandhiji रस्सी कूद खेलते बच्चे इकट्ठा होकर तालियां बजाते और खूब हंसते थे।