ब्रिटिश काल में रेल की पटरी बिछाने के लिए बहुत से पेड़ों को काटा गया | इस कारण दून, भाबर व तराई क्षेत्रों में वनस्पतियों की भारी कमी हो गई | लगभग सारी जमीन पेड़-पौधों से रहित हो गई |
अंग्रेज सरकार ने वनों के प्रबंधन के लिए वन विभाग की स्थापना की तदनंतर उपयोगी प्रजाति के पेड़ों पर विशेष ध्यान दिया जाने लगा | 1931 में पहली बार स्थानीय समुदाय के कुछ लोगों को थोड़ी जमीन देकर तराई और भाबर क्षेत्र में बसाया गया | इन लोगों से पूरे दून, भाबर व तराई में वृक्षारोपण का कार्य कराया गया | वृक्ष लगाने व वन बचाने की इस पद्धति को टाैंगिया नाम दिया गया |
उत्तराखंड राज्य के देहरादून, हरिद्वार, नैनीताल व उधमसिंहनगर के कई क्षेत्रों में टाैंगिया काश्तकारों ने कार्य आरंभ किया | उन्हें दी गई जमीन पर झुग्गियां वह छप्पर बनाकर टाैंगिया के परिवार रहने लगे | टोंगिया वनविदों के निर्देशन में काम करते व पूरे समय समर्पित भाव से खाली जमीन में पौधे रोपते |
इस बंजर हो चुकी जमीन पर साल, सागौन, कचनार, महुआ और खैर जैसी कई प्रजातियों की नर्सरी तैयार की गई | जमीन को कुदाल-फावड़े से खोद-खोद कर सुदारा गया | गड्ढे बनाए गए उनमें खाद डाली गई | दूर-दूर तक नालियां बनाकर सिंचाई की व्यवस्था की गई | रूखे मैदानों में तपती गर्मी, बरसात की झड़ी जाड़ों में कोहरे की परवाह न करते हुए टाैंगिया लोग निरंतर वृक्षारोपण का कार्य करते रहे | उनके घर-परिवार के सभी सदस्य इस कार्य में लगातार जुटे रहे | रात-रात जागकर भी इन लोगों ने आग, बाढ़ व जानवरों से इन पौधों की रक्षा की | धीरे-धीरे पौधे बढ़ने लगे और फैलने लगे | कुछ ही समय बाद उस वृक्ष विहीन धरती पर घना जंगल फैल गया | इन जंगलों में हाथी, शेर, हिरण, बारहसिंघा, बंदर, लंगूर, नेवले तथा कई प्रजातियों की चिड़िया आकर बसने लगी।
इन लोगों ने कठोर परिश्रम से यह जंगल तैयार किया। साथ उसकी रक्षा भी करते रहे | सरकार की तरफ से भी इसकी रक्षा के लिए गंभीर प्रयास आरंभ किए गए। सरकार ने इस क्षेत्र में" राजाजी राष्ट्रीय उद्यान" की स्थापना की। पाैडी, हरिद्वार, देहरादून वह सहारनपुर जनपद के कुछ हिस्से इस पार्क में शामिल हैं । राजाजी पार्क का लगभग 80% जंगल इन टाैंगिया काश्तकारों की मेहनत का परिणाम है।