सुदूर दक्षिण से गढ़वाल में एक सन्त आए । उनका नाम था स्वामी मनमंथन | वे एकांत में बैठकर चिंतन करते | वह बराबर यहां के बच्चों के बारे में विचार करते रहते | वह सोचते, कैसे यहां के बच्चों का जीवन अच्छा हो |
स्वामी मनमंथन ने एक स्कूल खोला | उनके स्कूल में कई बच्चे आते थे। मनमंथन सफाई पर विशेष ध्यान देते थे। उन दिनों गांव के बच्चों की स्थिति बहुत दीन-हीन थी | स्वामी जी एक ऐसा स्कूल बनाना चाहते थे जहां बच्चे खुश होकर पढ़ सकें |
स्वामी जी के आश्रम के समीप पानी का एक हौज था। स्वामी जी बच्चों को रोज हाैज के पानी से नहलाते | अपने कंधे पर लटके साफे से उन्हें पोंछते और तेल-कंघी कर उन्हें स्कूल भेजते | वहीं कई बार बच्चों के कपड़े भी धो देते | स्वामी जी बच्चों के साथ खेलते। उन्हें खाना खिलाते और बच्चों को बहुत प्यार करते थे।
एक बार किसी ने स्वामी जी से कहा- ' स्वामी जी! आप बच्चों को नहलाते रहते हो। वे घंटों आपके पास रहते हैं। जिससे उन्हें स्कूल जाने में देर हो जाती है। स्वामी जी जवाब देते, " देखो भाई! साफ सफाई सबसे बड़ी पढ़ाई है, बच्चा साफ सुथरा रहेगा तो उसका दिल दिमाग भी ठीक रहेगा |"
शाम को बच्चे स्कूल से घर लौटते | उनकी माताएं पूछती, " अरे! आज तो तुम साफ-सुथरे दिख रहे हो? " माँ! हमें जोगी ने नहलाया है।" यह सुनकर माताएं शर्म महसूस करती | हुए बच्चों को स्वयं नहलाने लगी | अगले दिन से सभी बच्चे साफ-सुथरे होकर स्कूल जाने लगे। बाद में इन्हीं स्वामी मनमंथन ने विश्वविद्यालय आंदोलन और बलि प्रथा उन्मूलन का सफल नेतृत्व किया | आज भी अनाथ महिलाओं और बच्चों के लिए इनके द्वारा स्थापित किया गया श्री भुवनेश्वरी महिला आश्रम टिहरी जिले के अंजनीसैंण में स्थित है |