Madho Singh Bhandari गढ़वाल के राजा महीपत शाह के दरबार में सेनापति थे । राजा का दीवान अक्सर देर से दरबार में आता था । एक दिन महाराजा ने उससे पूछा, " तुम देर से क्यों आते हो ? जबकि तुम्हारा ही साथी Madho Singh Bhandari ठीक समय पर आता है । " दीवान ने अपने को बचाने के लिए कहा, " महाराज, माधो सिंह के गांव में सिर्फ मंडवा, झंगोरा, गहथ जैसे मोटे अनाज होते हैं, जिन्हें पकाने में देर नहीं लगती । लेकिन मेरे गांव में तो गेहूं और धान जैसी फसलें होती है जिन्हें पकाने, खाने में देर हो जाती है। " इस प्रकार दीवान तो बच गया लेकिन Madho Singh Bhandari को यह बात चुभ गई । वे दरबार से छुट्टी लेकर घर चले गए।
एक दिन Madho Singh Bhandari घर पर बैठे-बैठे कुछ सोच ही रहे थे कि उनकी नजर एक चुहिया पर पड़ी। वह अपने रहने के लिए बिल बनाने में जुटी थी । यह देखकर Madho Singh Bhandari कि मन में विचार आया कि जब एक चुहिया अपने रहने के लिए बिल बना सकती है तो क्या मैं इस पहाड़ को खोदकर सुरंग नहीं बना सकता? "
Madho Singh Bhandari ने जब पहाड़ में सुरंग बनाना आरंभ कर दिया । Madho Singh Bhandari को अकेले इस काम पर जुटा देखकर लोग हंसने लगे और कहने लगे, "माधो! कभी पहाड़ पर भी कोई सुरंग बना सकता है ? यह असंभव काम है । अपना हठ छोड़ दे ।"
लेकिन बात के धनी Madho Singh Bhandari उनकी बातों को अनसुना करके अपने काम में जुटे रहे । जब Madho Singh Bhandari ने अकेली आधी सुरंग खोद दी तब शर्म के मारे गांव के लोग भी गैंती, सब्बल और बेलचे लेकर उनका सहयोग करने लगे। सुरंग बनाते समय Madho Singh Bhandari का पुत्र सुरंग के अंदर दब कर मर गया फिर भी उन्होंने धैर्य नहीं खोया वे काम पर जुटे रहे । कुछ दिनों में सुरंग बनकर तैयार हो गई और उससे Madho Singh Bhandari के गांव तक पानी आने लगा । गांव में गेहूं और धान जैसी फसलें लहलहा उठी ।
Madho Singh Bhandari के इस गांव का नाम है Maletha, । मलेथा गांव श्रीनगर-ऋषिकेश मोटर मार्ग पर स्थित है । आज भी पूरे गढ़वाल में Madho Singh Bhandari की याद में गीत गाए जाते हैं ।