कबीर का जीवन परिचय एवं उनके प्रमुख दोहे
कबीर दास भक्ति काल के सबसे महानतम कवियों में से एक थे | इनका जन्म 14वी -15वी शताब्दी के बीच काशी में हुआ था ऐसा माना जाता है और इनके गुरु का नाम स्वामी रामनंद था कबीर दास जी ज्ञानमार्गी कवि थे और इनकी कविताओं में रहस्यवाद झलकता है, गुरु स्वामी रामनंद ने उन्हें राम का भक्त होने का अद्वितीय वरदान दिया था लेकिन कबीर का दृष्टिकोण उस वक्त के अनुसार काफी अलग था क्योंकि भक्तिकाल में धार्मिक आडंबर अपने चरम पर था और कबीरदास जी इन सभी चीजों के विरुद्ध अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज में फैली बुराइयों का विरोध व्यक्त किया करते थे एक तरफ तो कबीर राम भक्त थे लेकिन दूसरी तरफ उन्होंने हिंदू धर्म की सभी प्रथाओं जैसे समाज में फैली बुराइयों, बाहरी दिखावे, आडंबर और पाखंड का विरोध किया वे व्रत, उपवास, मूर्ति पूजा को एक आडंबर मानते थे यही नहीं उन्होंने अजान, नमाज, हज, रोजा आदि की भी निंदा की क्योंकि कबीर ने ईश्वर को निराकार रूप में स्वीकारा था वह बाहरी दिखावे को मात्र एक आडंबर मानते थे |
कबीर की भाषा
कबीर दास की रचनाओं का अध्ययन करने पर यह स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है कि उनकी रचनाओं में किसी एक भाषा का नहीं अपितु अनेक भाषाओं का प्रयोग किया गया था उन्होंने अपनी रचनाओं में हिंदी, उर्दू, फारसी, खड़ी बोली, भोजपुरी, अवधी, मारवाड़ी आदि भाषाओं का प्रयोग किया है जिस कारण उनकी भाषा को "पंचमेल या खिचड़ी" कहा जाता है, कबीर की भाषा को साधुक्कड़ी भी कहते हैं |
नारी के प्रति कबीर का दृष्टिकोण
वैसे देखा जाए तो कबीर दास जी ने समाज सुधार के अनेक कार्य किए लेकिन नारी के प्रति उनका दृष्टिकोण आज के समयानुसार नकारात्मक होता है उन्होंने नारी को धोखा अथवा छलावा कहा है कबीर ने एक दोहे में नारी को" नारी विष की भरली" कहा है |
उनका मानना था कि नारी मोहनी रूपी माया हमें चारों तरफ से घेर लेती है ऐसा इसलिए भी है क्योंकि नारी के प्रति आकर्षण परमात्मा से हमें दूर लेकर जाता है क्योंकि हम अपनी इंद्रियों पर काबू नहीं कर पाते हैं|
उनका मानना था कि नारी मोहनी रूपी माया हमें चारों तरफ से घेर लेती है ऐसा इसलिए भी है क्योंकि नारी के प्रति आकर्षण परमात्मा से हमें दूर लेकर जाता है क्योंकि हम अपनी इंद्रियों पर काबू नहीं कर पाते हैं|
कबीर के लिए गुरु का महत्व
कबीर दास जी अपने गुरु के प्रति प्रेम कुछ इस प्रकार व्यक्त करते हैं
गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागू पाय
बलिहारी गुरु आपके, गोविंद दियो बताय
कबीर ने गुरु को ईश्वर से भी ऊंचा स्थान दिया है उनका मानना था कि माता-पिता के पश्चात गुरु ही वह व्यक्ति है जो हमें इस जीवन सागर से पार करा सकते हैं क्योंकि उनके ज्ञान के बिना हम कुछ भी नहीं हैं|
प्रेम के प्रति कबीर का दृष्टिकोण
कबीर दास की सभी रचनाओं को देखें तो वे सभी प्रेम पर ही आधारित हैं लेकिन उनका प्रेम किसी स्त्री के लिए नहीं उनका प्रेम कोई शारीरिक संबंध नहीं है बल्कि उनका प्रेम तो ईश्वर के प्रति एक तपस्वी की भांति है|
कबीर के प्रमुख दोहे
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय,
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय.
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पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय.
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जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान,
मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान.
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माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर, कर का मन का डार दे, मन का मनका फेर ॥
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गुरु गोविंद दोनों खड़े, काके लागूं पाँय,
बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो मिलाय ॥
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साईं इतना दीजिये, जा मे कुटुम समाय,
मैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय ॥
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बडा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर
पंथी को छाया नही फल लागे अति दूर
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कबीरा खड़ा बाजार में मांगे सब की खैर
न कहु से दोस्ती न कहु से बैर
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कल करे सो आज कर , आज करे सो अब
पल में परलय होगी , बहुरि करोगे कब
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दुःख में सिमरन सब करें , सुख में करे न कोई
जो सुख में सिमरन करे , तो दुःख कहे को होये .
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ऐसी वाणी बोलिये , मन का आपा खोये ,
अपना तन शीतल करे , औरों को सुख होये .
Nice artical
ReplyDeleteHey Guys Don't forget to comment
ReplyDeleteEnglish Notes for UPSC
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