हिंदी के महाकवि Suryakant Tripathi Nirala की निर्धनता, दुखों और फक्कड़ स्वभाव के बारे में बहुत सी घटनाएं सुनी जाती है। उन्हें जानने वाले बताते हैं, कि इसके बावजूद उन्हें रूपए-पैसे का लालच छू भी नहीं पाया था। अक्सर ऐसा भी होता था, कि उनके घर में दो वक्त की रोटी के लिए अनाज नहीं जुड़ता था, या परिवार के सदस्यों के इलाज के लिए धन उपलब्ध नहीं होता था। फिर भी वे विचलित नहीं होते थे।
एक बार वे ऐसी ही स्थितियों से गुजर रहे थे कि, एक साहित्यिक संस्था की ओर से उन्हें 2100 रुपए का पुरस्कार मिला। पुरस्कार समारोह में ही 'Suryakant Tripathi Nirala ' जी को पता चला कि उस समय की प्रसिद्ध साहित्यिक पत्रिका 'सरस्वती' घाटे में चल रही है।
संयोग से सरस्वती के संपादक उस सम्मेलन में आए हुए थे। पुरस्कार पाते ही "Suryakant Tripathi Nirala " जी ने वह रकम "सरस्वती" के संपादक को भेंट कर दी और कहा, "सरस्वती बंद नहीं होनी चाहिए।"
अनमोल वचन
तुलसी पंछिन के पिये, घटे न सरिता -नीर ।
दान दिए धन ना घटै, जो सहाय रघुवीर ।।
तुलसीदास के अनमोल वचन
जो जल बाढ़ै नाव में, घर में बाढ़ै दाम ।
दोऊ हाथ उलीचिये, यही सयानो काम ।।
कबीरदास के Anmol Vachan
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