महात्मा Buddha उन दिनों बौद्ध धर्म के प्रचार में लगे थे। ऐसे अनेक लोग थे, जिन्हें Buddha की बातें पसंद नहीं आती थी। Buddha के समर्थकों की संख्या बढ़ रही थी, तो उनके विरोधियों की संख्या भी कम नहीं थी।
एक दिन Buddha अपनी शिष्य मंडली के साथ किसी स्थान पर ध्यानस्थ होकर बैठे थे। तभी एक व्यक्ति Buddha के पास आया। ध्यानस्थ Buddha ने अपनी आंखें खोली और उससे आने का कारण पूछा। उस व्यक्ति ने Buddha से कहा कि वे अपने उपदेश देना बंद कर दें।
Buddha बोले--" जब तक उपदेश बंद करने का सही कारण मेरी समझ में नहीं आता , मैं उपदेश देना बंद नहीं कर सकता।"
इस पर वह व्यक्ति उन्हें गालियां देने लगा। उसके गालियां देने पर वहां बैठे Buddha भिक्षुओं की समूह समूह में बेचैनी फैल गई। लेकिन Buddha चुपचाप उस आदमी की गालियां सुनती रहे गालियां देते और बुरा भला कहते हुए वह व्यक्ति थक गया।
अब Buddha ने शांतिपूर्वक पूछा पूछा , " क्यों मित्र ! चुप क्यों हो गए ? तुम्हारे खजाने में अब देने के लिए क्या और कुछ नहीं बचा है ? जो चीज है उसे भी दे दो। दो। भी दे दो। दो। लेकिन विश्वास करो, तुमने मुझे जो भी दिया है कोमा उसमें से मैंने कुछ भी नहीं लिया है। इसलिए वह सब तुम्हारे पास ही रह गया है।"
वह व्यक्ति पानी-पानी हो गया और Buddha के चरणों पर गिर पड़ा।
अनमोल वचन
"मनुष्य का जीवन अपने ही हाथों में है, वह अपने को जैसा चाहे बना सकता है। इसका मूल मंत्र यही है, कि बुरे, छुद्र और अश्लील विचार मन में ना आने पाएं, वह बलपूर्वक इन विचारों को हटाता रहे, और उत्कृष्ट विचारों तथा भावों से अपने हृदय को पवित्र राखें ।
प्रेमचंद