30 मई 1930 की बात है | रवाँई-जौनपुर के हजारों लोग तिलाड़ी के मैदान में एक सभा कर रहे थे | यह लोग राजा से जंगलों और गोेैचर भूमि पर अपने अधिकारों की मांग कर रहे थे | राजा के सैनिकों ने बिना उनकी बात सुने, हजारों निहत्थे लोगों पर गोलियां चला दी | पूरा मैदान लाशों के ढेर में बदल गया | यह घटना ' तिलाड़ी-काण्ड' के नाम से जानी जाती है |
इस घटना का समाचार रवाँई निवासी किसी संवाददाता ने उस समय के समाचार पत्र 'गढ़वाली' मे प्रकाशित करा दिया | समाचार पढ़कर जनता में मानो भूचाल आ गया | राजा और उसके कर्मचारी घबरा गए | पूरी टिहरी रियासत हिल उठी |
"गढ़वाली" के संपादक विश्वंभर दत्त चंदोला थे | राजा ने चंदोला जी से कहा, " उस संवाददाता का नाम बताओ और इस घटना के लिए माफी मांगो |"
चंदोला जी ने कहा, " संवाददाता का नाम नहीं बताऊंगा |" उन्होंने माफी मांगने से भी इनकार कर दिया | इस घटना के लिए मजिस्ट्रेट ने उन्हें एक वर्ष की कैद की सजा सुना दी | चंदोला जी ने कैद सहर्ष स्वीकार कर ली पर अपने आदर्शों से डिगे नहीं | वह जब तक जीवित रहे, पत्रकारिता से उत्तराखंड की सेवा करते रहे | उनका समाचार पत्र उत्तराखंड में स्वतंत्रता की आग को हवा देता रहा |