प्रेरक प्रसंग - शैलेश हाई स्कूल में पढ़ते थे | अल्मोड़ा में उनके चाचा की मांस की दुकान थी | शैलेश पढ़ाई भी करतीे और चाचा के साथ दुकान पर भी बैठते थे | दुकान पर वह बकरे की खाल उतारते | मांस काटते और उसका कीमा बनाकर बेचते थे | इसके साथ-साथ शैलेश कविताएं और कहानियां भी लिखा करते थे |
उनकी दुकान पर तरह-तरह के लोग आया करते थे | कुछ दिनों बाद लोगों को पता चला कि शैलेश कविताएं और कहानियां भी लिखते हैं |
एक दिन किसी आदमी ने शैलेश को सुनाते हुए कहा, "बच्चे! मांस तो तुम बढ़िया कूट लेते हो | इतनी ही बढ़िया कोई कविता बना कर दिखाओ तो जानें |"
शैलेश को यह बात चुभ गई | वह घर आए और घंटों सोचते रहे | उन्होंने निश्चय किया - मैं खूब कहानियां और कविताएं लिखूंगा | मुझे अब साहित्यकार बनना है, और कुछ नहीं |
बालक शैलेश ने जीवन भर इस बात को निभाया |
बाद में वे हिंदी के महान साहित्यकार बने | जिन्हें साहित्य जगत में शैलेश मटियानी के नाम से जाना जाता है |