राकेफेलर अमेरिका के धनी व्यक्तियों में से एक थे। बात उन दिनों की है जब उन्होंने तेल की कंपनी प्रारंभ की थी। वे कभी-कभी खुद भी मशीनों की देखरेख करते थे। एक दिन की बात है कि वे एक मशीन को बड़े ध्यान से देख रहे थे। वह मशीन तेल से भरे कनस्तरों को रांगे के टाँकों से बंद कर रही थी। उन्होंने गिना, एक कनस्तर के टाँके में रागे की उन्तालीस प्रयोग में आ रही थी। राकेफेलर ने फोरमैन से पूछा, कि ढक्कन बंद करने में कितनी बूंदों की आवश्यकता होती है? फोरमैन सकपका गया ।
ढक्कन बंद करने की जांच हुई। यह पता चला कि इसमें अड़तीस बूंदें भी ढक्कन को उतनी ही अच्छी तरह बंद कर सकती हैं, जितना कि उन्तालीस बूंदें करती हैं ।
एक वर्ष बाद हिसाब लगाया गया तो पता चला कि एक बूंद प्रति कनस्तर की बचत से साढ़े सात लाख डॉलर की अतिरिक्त आय हुई थी।
Moral of The Story
"बिंदु-बिंदु से सिंधु बना है, बिंदु-बिंदु से ये बादल।
बिंदु-बिंदु से निर्झर झरता, मिलता सुर-सरिता का जल। ।
जल-बिंदु निपातेन, क्रमशः पूर्यते घटः ।
(पानी की एक-एक बूंद गिरने से घड़ा भर जाता है)