Ram Prasad Bismil - राम प्रसाद बिस्मिल के प्रेरक प्रसंग

Ram Prasad Bismil

काकोरी काण्ड के अग्रणी क्रान्तिकारी Ram Prasad Bismil को गोरखपुर जेल में 19 दिसम्बर 1927 को फाँसी होनी थी। फाँसी के पहले वाली शाम को जब उन्हें दूध पीने के लिए दिया गया तो उन्होंने यह कहकर इन्कार कर दिया किया कि अब तो में भारत माँ का दूध पिऊँगा। उसी दिन उनकी अपनी माँ से भी मुलाकात हुई। माँ से मिलते ही Ram Prasad Bismil की आँखों से आँसू बहने लगे। माँ अपने बेटे की आँखों में आँसू देखकर बोली "बेटा तुम्हारा जीवन हरिश्चन्द्र, दधीचि आदि पूर्वजों की तरह बीता है। धर्म व देश के लिए जान देकर चिन्ता करने और पछताने की जरूरत नहीं है।" यह सुनकर Ram Prasad Bismil हँस पड़े और बोले, "माँ, मुझे कोई चिन्ता और पछतावा नहीं है। मैने कोई पाप नहीं किया

है। मैं मौत से नहीं डरता लेकिन माँ, आग के पास रखा घी पिघल ही जाता है। तेरा मेरा सम्बन्ध ही कुछ ऐसा है कि पास होते ही औखों से औसू उमड़ पड़े। लेकिन वास्तव में मैं बहुत खुश हूँ |"

19 दिसम्बर 1927 को प्रातः काल नित्यकर्म संध्या वंदन आदि से निवृत्त हो कर Ram Prasad Bismil ने अपनी माता को एक पत्र लिखा। जिसमें देशवासियों के नाम एक संदेश भेजा और फिर फाँसी की प्रतीक्षा में बैठ गए। फाँसी के तख्ते पर ले जाने वाले आए तो " वन्दे मातरम और भारत माता की जय कहते हुए तुरन्त उठ कर चल दिए। फाँसी के दरवाजे पर पहुँच कर उन्होंने कहा "मैं ब्रिटिश साम्राज्य का विनाश चाहता हूँ।" इसके बाद तख्ते पर खड़े होकर प्रार्थना के बाद विश्वानि देव सवितर्दुरितानि आदि मंत्रों का जाप करते हुए वे गोरखपुर जेल में फाँसी के फन्दे पर झूल गए। प्रातः 7 बजे उनका शव प्राप्त किया गया और भारी जुलूस निकला। गोरखपुर की जनता ने उनके शव को आदर के साथ शहर में घुमाया। बाजार में अर्थी पर इत्र तथा फूल बरसाये गये और पैसे लुटाए गए। 11:00 बजे शहीद का शव श्मशान पहुँचा और अन्तिम क्रिया समाप्त हुई। अपने पुत्र को देश पर बलिदान हुए देख कर स्वदेश प्रेम में Ram Prasad Bismil की माता के शब्द थे, "मैं अपने पुत्र की स्मृति पर प्रसन्न हूँ, दुःखी नहीं। "

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