जैविक खेती - Jaivik Kheti

Jaivik Kheti

Jaivik Kheti (Organic farming)  में परंपरागत संसाधनों का बेहतर उपयोग कर हम कम लागत में अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं । कुछ प्रमुख परंपरागत तकनीकीयों जैसे कि पंचगव्य , Jaivik फफूंदी नाशक , Jaivik कीटनाशक , तरल खाद , मटका खाद , अमृत पानी , वर्मीवास एवं हरी खाद आदि के प्रयोग से हम अधिक फसल उत्पादन कर सकते हैं तथा वातावरण को स्वच्छ एवं समाज को भी स्वस्थ रख सकते हैं ।


Jaivik Kheti में क्या करें - क्या ना करें ?

क्या करें :

• किसान अपने खेत में पुआल , घास फूस , पत्तियाँ आदि न जलायें बल्कि इन्हें इकट्ठा करके कम्पोस्टानाडेप कम्पोस्ट खाद बनायें। 

• Jaivik Kheton की मेंड़ बन्दी अच्छी तरह से करें ताकि अजैविक खेतों से पानी बहकर न आ पाये।

 • अपने Jaivik Khet में मुख्य फसल के चारों तरफ ' बार्डर ( बफर ) फसल जरूर उगायें जैसे - चरी , ज्वार , बाजरा , मक्का , अरहर एवं लैंचा आदि। 

• अगर समानान्तर फसल उत्पादन कर रहे हैं , तो Jaivik एवं अजैविक का अलग - अलग लेखा जोखा रखें। 

• Jaivik Kheti में अपने Khet से प्राप्त Jaivik बीज ही उपयोग करें अथवा Jaivik बीज ही क्रय करें । अजैविक बीज बाजार से खरीदे गए हों तो उनको बुआई से पहले बीजामृत से उपचारित करके बुआई करें।

• अपने Khet में प्लास्टिक की थैलियां व टुकड़े आदि न आने दें और खेत साफ सुथरा रखें।

• Jaivik Kheti हेतु राष्ट्रीय मानकों का अध्ययन करें एवं पूरी जानकारी रखें।

• Jaivik Kheti को सस्ती एवं लाभदायक बनाने हेतु सभी संसाधन अपने Khet पर ही तैयार करें जैसे नाडेप कम्पोस्ट , सी ० पी ० पी ० कम्पोस्ट , वर्मी वॉश , हरी Khad आदि।

• Jaivik फसल जैसे आलू , लहसुन , अरबी , अदरक आदि का भण्डारण भी अलग से करें।

• Jaivik उत्पाद की परिवहन व्यवस्था अलग से करें।

• Jaivik Kheti में उपयोग किये जाने वाले सभी यंत्रों जैसे दरांती , फावड़ा , खुरपी , छिड़काव मशीन , सीडड्रिल , थ्रेशर हैरो , ट्रैक्टर आदि का उपयोग करने से पहले भलि भाँति सफाई एवं धुलाई करें।
 
• Jaivik एवं अजैविक फसल उत्पादन की कटाई , मंडाई सफाई , ग्रेडिंग एवं पैकिंग अलग से करें। 

• Jaivik उत्पाद की पैकेजिंग में अजैविक उत्पादों के उपयोग में लाये बैग , बोरे , टोकरी आदि का उपयोग ना करें।

• Jaivik उत्पाद पर सही लेबल लगाकर परिवहन एवं भंडारण करें।
 
• Jaivik उत्पाद का उचित मूल्य पाने हेतु कृषक समूह के साथ ही विपणन करें।

फसलों में लगने वाले रोगों व कीटों से बचाव के लिए समेकित रणनीति अपनानी चाहिए जिसके लिए निम्न बिन्दुओं पर भी ध्यान देना चाहिए ।

• रोग कीट रोधी व सहनशील किस्मों को लगाना ।

• स्वस्थ फसल से प्राप्त स्वस्थ बीजों का प्रयोग करना ।

• बीजोपचार करना व उचित समय व दूरी पर बुवाई करना।

• गुडाई आदि के समय पौधों पर घाव न होने देना।

• उचित समय पर सिंचाई करना।

• रोग ग्रसित पौधों के अवषेश जला देना 

• फसल विषेश के कीटों के बारे में सही जानकारी प्राप्त करना एवं उनकी पहचान करना
• व्याधियों पर निगरानी रखना।

• व्याधियों के अधिक प्रकोप के समय की जानकारी रखना।

• गर्मियों में Khet की गहरी जुताई करके खुला छोड़ें , Khet को खरपतवार मुक्त रखना तथा उचित फसल चक्र अपनाना।

• कीट भागों की छंटाई तथा क्षतिग्रस्त पौधों एवं फलों को छंटाई कर नष्ट करना।

• उर्वरकों की संस्तुत मात्रा और अच्छी तरह सडी कार्बनिक खादों का प्रयोग करना।

• कीटों को आकर्षित करने वाली फसल को मुख्य फसल के पास लगाना एवं उचित समय पर आकर्षित करने वाली फसल को काट लेना।

• हानिकारक कीटों के प्राकृतिक शत्रु कीटों ( परजीवी / परभक्षी ) का संरक्षण एवं प्रयोग।

क्या न करें :

• Jaivik Kheti में वर्जित रासायनिक एवं अरासायनिक निवेश उपयोग में न लायें।

• Jaivik एवं अजैविक फसल के उत्पाद का साथ - साथ भण्डारण न करें।

• Jaivik एवं अजैविक बीज जैसे - आलु , लहसुन , अरबी , अदरक आदि का भण्डारण साथ - साथ न करें।

• Jaivik एवं अजैविक उत्पाद का परिवहन ( ट्रांसपोर्ट ) एक ही वाहन से करना वर्जित है।

• अजैविक उत्पादों के उपयोग में लाये गये बैग , बोरे , टोकरी आदि का उपयोग Jaivik उत्पाद की पैकेजिंग में न करें।

• Jaivik उत्पादों की पैकेजिंग रसायनिक खादों के बोरों में करना वर्जित है।

• किसान अपने Khet में मल - मूत्र का त्याग न करें।

Jaivik फसलों में खाद , जैविक उर्वरक प्रबंधन , बीज शोधन एवं बीजोपचार तथा कीट - रोग नियंत्रण कब और 

कैसे करें ? 

Jaivik Kheti में मुख्य पोषक तत्वों की पूर्ति हेतु प्रक्षेत्र पर बनाई गई गोबर की खाद , नाडेप कम्पोस्ट , सी ० पी ० पी ० ( गाय के गोबर की कम्पोस्ट ) केंचुआ खाद , केंचुआ शोधन , जैव उर्वरक मिश्रण ( बायोफर्टीलाइजर्स ) आदि का उपयोग करें । जैव उर्वरक के उपयोग करने से भूमि की उर्वरा शक्ति में सुधार होता है । 


• जैव उर्वरक मिश्रण मृदा में उपलब्ध पोषक तत्वों की घुलनशीलता को बढ़ाकर पौधों को उपलब्ध कराता है।

• भूमि में रासायनिक एवं मेटाबोलिक क्रियाओं से उत्पन्न जहरीलेपन को कम करता है।

• भूमि में Jaivik कार्बन की मात्रा बढ़ाकर पौधों की बढ़वार में सहायक होता है।

• जैव अपघटन ( परिवर्तन ) को बढ़ावा देता है।

• भूमि में लाभदायक सूक्ष्म जीवाणुओं की संख्या बढ़ती है।

• भूमि के पी ० एच ० को संतुलित करने में मदद करता है।

• भूमि में सूक्ष्म पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ाता है।

• बीज के जमाव प्रतिशत को बढ़ाता है।

जैव उर्वरक से पौष्टिक कम्पोस्ट कैसे बनायें ?

compost

• जैव उर्वरक 2 किग्रा . को 2 किग्रा . पुराने गुड़ के साथ 12-15 लीटर पानी में घोलें।

• पूरी तरह से सड़ी हुई 1.5-2.0 कुन्तल गोबर की खाद या कम्पोस्ट खाद को छाया में जमीन पर गद्दे नुमा ( 1.5 ग 1 . 5 ) मीटर चकोर समतल बिछावन तैयार करें।

• जैव उर्वरक व गुड़ के तैयार घोल को फैलाई हुई खाद की सतह पर छिड़क कर फावड़े से अच्छी तरह से मिलाएं । अब खाद को इकट्ठा करके ढेर बना दें और पुआल से 8-10 दिन तक ढ़ककर रखें

• Khad के इस मिश्रण को बीच में 3 बार फिर मिलाना ज्यादा

• इस जैव परिवर्तित मिश्रण / कम्पोस्ट को 7-8 दिन के अन्दर एक हेक्टेयर खेत में उपयोग करना चाहिए।

• उपरोक्त विधि से तैयार की गई पौष्टिक Khad का फसल की बुआई से पहले अन्तिम जुताई के साथ शाम के समय उपयोग करें । मिश्रण को खड़ी फसल में बुरकने के तुरन्त बाद सिंचाई करना लाभदायक होता है।

• फसल में जैव उर्वरक को आवश्यकतानुसार 2-3 बार खाद के रूप में सिंचाई के समय उपयोग किया जा सकता है । लाभकारी होगा।

बीज शोधन एवं उपचार 

बीज

बीज जनित रोग से बचाव के लिए 8-10 ग्राम ट्राईकोडर्मा प्रति किग्रा . बीज की दर से बीज को बोने से पूर्व शोधित करना चाहिए । दलहनी फसलों के बीज को अलग - अलग राईजोबियम कल्चर एवं पी ० एस ० बी ० कल्चर से उपचारित करना चाहिए । एक पैकेट ( 200 ग्राम ) राइजोबियम कल्चर 10 किग्रा . बीज उपचार के लिए पर्याप्त होता है । एक पैकेट राईजोबियम कल्चर को साफ पानी में मिलाकर 10 किग्रा . बीज उपचार के लिए पर्याप्त होता है , एक पैकेट राईजोबियम कल्चर को साफ पानी में मिलाकर 10 किग्रा . दलहनी फसलों के बीज के ऊपर छिड़ककर हल्के हाथ से मिलायें , जिससे बीज के ऊपर कल्चर की एक हल्की परत बन जाए । इस बीज की बुआई तुरन्त करें । तेज धूप में बुआई करने पर कल्चर के जीवाणुओं के मरने की आशंका रहती है । 


तरल खाद एवं कीटनाशी कैसे तैयार करें ? 

तरल खाद एवं कीटनाशी जो गोबर , गौ - मूत्र तथा विभिन्न प्रकार के औषधीय पौधों एवं वृक्षों की पत्तियों से बनाये जाते हैं , जैसे - नीम , अरण्डी , करंज , मदार ( ऑक ) सदाबहार ( बेशरम या आइपोमिया ) लैण्टाना , धतूरा , कंटीली , कनेर आदि । इस तरल खाद में कीट एवं रोग निवारक गुण होते हैं । 


बनाने की विधि एवं उपयोगः 

• किन्ही 1-2 पेड़ - पौधों नीम , अरण्डी , करंज , मदार ( ऑक ) सदाबहार ( बेशरम या आइपोमिया ) लैण्टाना , धतूरा , कंटीली , कनेर आदि के 5-10 किग्रा . फूल पत्तियों को बारीकी से काट लें।

• प्लास्टिक के 200 लीटर वाले ड्रम में काटी गई पत्तियों के टुकड़ों को डाल दें , फिर उसमें गाय का ताजा गोबर 5 किग्रा . गौमूत्र 5 लीटर , छाछ ( मट्ठा ) 5 लीटर , बेसन 500 ग्राम . , गुड़ 500 ग्राम . , लहसुन 100 ग्राम . , जैव उर्वरक 200-200 ग्राम एवं उपजाऊ मिट्टी 500 ग्राम . मिलाकर ड्रम को पूरा पानी से भर दें।

• नियमित रूप से दिन में दो बार ( सुबह - शाम ) लकड़ी के डण्डे से ड्रम में तरल को मिलायें तथा बोरे या जाली से ढ़ककर रख दें।

• इस प्रकार उपयुक्त तापमान ( 30-35 डिसे ० ) पर तरल खाद एवं कीटनाशी 20-25 दिन में तैयार हो जाती है।

• तैयार खाद एवं कीटनाशी की 10 लीटर मात्रा को 100 लीटर पानी में घोल कर फसलों पर छिड़काव करें।

• इस तरल खाद एवं कीटनाशी घोल का 15-20 दिन के अन्दर कीट एवं रोग नियंत्रण हेतु उपयोग करें।


कीट एवं रोग नियंत्रण

कीट

• फसल में कीट नियंत्रण हेतु मान्यता प्राप्त जैविक संसाधन ही उपयोग में लायें । जैव कीटनाशक ( मेटराइजिम या बिवेरिया ) की दो किग्रा . मात्रा व आधा किग्रा . गुड़ लेकर 15 लीटर पानी में घोल लें , और छाया में लगभग 2 दिन तक सड़ने दें । उसके बाद 3 लीटर जैविक मिश्रण को 10 लीटर पानी में घालकर शाम के समय आवश्यकतानुसार फसल पर कीट नियंत्रण हेतु छिड़काव करें ।

• फसल रोग नियंत्रण हेतु मान्यता प्राप्त जैविक संसाधन ही उपयोग में लायें । जैव फफुदीनाशक ( ट्राईकोडर्मा ) की 2 किग्रा . व 500 ग्राम . गुड़ लेकर 15 लीटर पानी में घोलें और छाया में लगभग 2 दिन तक सड़ने दें । उसके बाद 3 लीटर जैव मिश्रण को 100 लीटर पानी में घोलकर शाम के समय आवश्यकतानुसार फसल पर रोग नियंत्रण हेतु छिड़काव करें ।

Credit - SUVIDHA

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