अंधेरी काली रात थी। बिजली चमक रही थी। महात्मा ज्योतिबा को घर लौटने में देर हो गई थी। हुई सरपट घर की ओर बढ़े जा रहे थे। बिजली चमकी तो उन्होंने देखा कि आगे रास्ते में दो व्यक्ति हाथों में चमचमाती तलवारे लिए जा रहे हैं। वह अपनी चाल तेज कर उनके समीप पहुंचे। ज्योतिबा ने उनसे पूछा, " आप लोग इतनी रात को हाथों में तलवारें लिए कहां जा रहे हो ? उन्होंने कहा, हम ज्योतिबा फुले को मारने जा रहे हैं |"
महात्मा ज्योतिबा ने पूछा, " उन्हें मारकर तुम्हें क्या मिलेगा? " उन्होंने उत्तर दिया, " पैसे मिलेंगे | हमें पैसों की आवश्यकता है।"
महात्मा ने क्षणभर सोचा और फिर कहा, " तो मार लो मुझे, मैं ही ज्योतिबा फुले हूं | मेरे मरने से यदि तुम्हारा हित होता है तुम मुझे मरने में खुशी होगी।" इतना सुनते ही उन दोनों व्यक्तियों की तलवार है हाथ से छूट गई । वे ज्योतिबा के चरणों में गिर पड़े। वे दोनों उसी समय से उनके शिष्य बन गए। ये ज्योतिबा फुले महान समाज सुधारक थे। उन्होंने अछूतोद्वार, नारीशिक्षा, विधवा विवाह और किसानों की हित में उल्लेखनीय कार्य किए।